बीएसपी प्रबंधन ने रेल पटरी और प्लेट के उत्पादन को बढ़ाने जा रहा है। इसके लिए रेल मिल और प्लेट मिल में आधुनिक तकनीक से लैस करीब 300 करोड़ की लागत से रि-हीटिंग फर्नेस स्थापित किए जाएंगे। किसी भी मिल का पहला पायदान रि-हीटिंग फर्नेस होता है। जिसमें सेमी प्रॉडक्ट को एक निर्धारित तापमान में गर्म किया जाता है।
जिसमें ब्लूम, स्लैब और बिलेट शामिल है। इन्हें निर्धारित तापमान में गर्म करने के बाद फिनिश्ड प्रोडक्ट तैयार करने के लिए रोलिंग टेबल में भेजा जाता है। फर्नेस में तापमान के लिए मिक्स्ड गैस जिसमें कोक ओवन और फर्नेस की गैस का इस्तेमाल किया जाता है। प्रबंधन को इस प्रक्रिया के लिए अलग से ऊर्जा खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। वर्तमान रि-हीटिंग पुरानी तकनीक से की जा रही है।
जानिए…क्यों जरूरी है रि-हीटिंग फर्नेस को बदलना
भारतीय रेलवे को हर साल 15 से 16 लाख टन रेल पटरी की डिमांड है। जबकि बीएसपी केवल 11 से 12 लाख टन रेल पटरी का ही उत्पादन कर पा रहा है। इसलिए रेल पटरी के उत्पादन को बढ़ाने के लिए रेल मिल को अपग्रेड किया जा रहा है। इसी तरह बीएसपी के प्लेट की मार्केट में काफी डिमांड है। लेकिन डिफेंस और सरकारी प्रोजेक्ट के लिए बड़ा आर्डर को ही प्लेट मिल पूरा नहीं कर पा रहा। इसलिए बदला जाना जरूरी है।
पुराने और नए रि-हीटिंग फर्नेस के अंतर को समझिए
- पुराना रि-हीटिंग फर्नेस पुशर पर आधारित है। जिसमें सेमी प्रॉडक्ट स्लैब, ब्लूम को पुश किया जाता है। फर्नेस के दूसरी ओर से सेमी प्रॉडक्ट के निकलने के बाद उसे फिनिश्ड प्रॉडक्ट बनाने के लिए रोलिंग टेबल में रोल किया जाता है। यह प्रक्रिया धीमी होने के साथ ही सेमी प्रॉडक्ट को पुश किए जाने से मार्किंग आने की आशंका बनी रहती है। जिसकी वजह से फिनिश्ड प्रॉडक्ट के रिजेक्शन की संभावना बनी रहती है।
- नई रि-हीटिंग फर्नेस में वाकिंग बीम की सुविधा है। यानि इस सिस्टम में सेमी प्रॉडक्ट निर्धारित तापमान देने के लिए पुश करने की बजाए उठाया जाता है। इसमें हीटिंग की क्वालिटी बेहतर होती है। तापमान को जल्द ग्रहण की क्षमता होती है।